Monday 18 February 2013

मेरी ज़िंदगी




दोस्तों लिखा करता हुन मैं ज़िंदगी के कुछ ऱम्हों को,
बस आप पढ़ते जाइये मेरा अक्स सामने रखते रखते॰

वो फिर याद आई मुझे मास म बचपन की रातें,
सुऱाया था माॉ ने मुझे ऱोररयाॉ कहते कहते॰

मुझे कुछ होश ना था, माने का मेरे दोस्तों,
कट गए वो ददन भी पापा की अदाएगी करते करते॰

घर से बाहर गया तो लमऱा दोस्तों तुम्हारा सहारा,
लमऱ गई सारी खुलशयाॉ, आ ादी के पॊख बदऱते बदऱते॰

तौिीक़ ना हुइ मुझे एक न र प्यार की,
और चुप हुआ मै इक़रार करते करते॰

फकसी ालऱम ने जो प छा की क्या हाऱ है तेरा,
शमम से पानी हुआ मैं इश्क़-ए-रोग कहते कहते॰

ननशान-ए-राह जो देखा आसमाॊ में लसतारों का,
तरस गए हम हर मोड़ पे रहनुमा कहते कहते॰

हर तरफ़ राह में काॊटों का है बस बसेरा,
एक तऱब साथ थी, और चऱ पड़े खुदा का नाम ऱेते ऱेते॰

ये आसान रास्ते भी सख़्त ऱगते हैं अब मुझको,
क्या करें जीना है, और जी रहा ह ॉ हसते हसते॰

उपरवाऱे तुझे भ ऱ जाऊॉ, ये मुमफकन नही,
बस जीना चाहता ह ॉ तुम्हारी इबादत करते करते॰

ये बात नही फक मुझे ख़ुदा और उसफक वहदानीयत पर यक़ीन नही,
ये बातें ना जाने मुझे कहाॉ ऱे आईं, अपनी ज़जॊदगी कहते कहते॰

ये तो थी मेरी ज़ ॊदगी की कुछ बातें,
मुस्तक़बबऱ लऱखुॊगा रूर, अपकी इनायत पाते पाते॰